“2024 में La Niña की हैरान कर देने वाली चुप्पी: क्या यह वैश्विक तापमान को रिकॉर्ड ऊंचाई तक पहुंचा देगा?”

Satyam Singh
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La Niña:-वर्ष 2024 के समाप्त होने में अब कुछ ही दिन शेष हैं, और इस समय पर्याप्त आंकड़े हैं जो यह सुझाव देते हैं कि 2024, 2016 को पीछे छोड़ते हुए अब तक का सबसे गर्म वर्ष हो सकता है। इसके कई कारणों में से एक यह है कि पूर्वानुमानों के बावजूद La Niña का उदय नहीं हो रहा है, जो जलवायु परिघटनाओं की दुनिया में एक दिलचस्प स्थिति है। इस लेख में हम ला नीना के प्रभाव, इसकी विफलता के कारणों और वैश्विक जलवायु पर इसके संभावित असर पर चर्चा करेंगे।

La Niña क्या है?

La Niña , एल नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO) का एक महत्वपूर्ण चरण है, जो उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर के तापमान में बदलाव के कारण उत्पन्न होता है। ENSO के तीन चरण होते हैं:

  • एल नीनो (गर्म)
  • ला नीना (ठंडा)
  • तटस्थ अवस्था

La Niña एल नीनो के विपरीत, समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से कम होने की स्थिति में उत्पन्न होती है। यह स्थिति व्यापारिक हवाओं के प्रभाव से पश्चिमी प्रशांत की ओर पानी को धकेलने के कारण उत्पन्न होती है। इस प्रकार, प्रशांत महासागर का पूर्वी भाग ठंडा हो जाता है, जो वैश्विक जलवायु को प्रभावित करता है।

ENSO के तीन चरण और उनका प्रभाव

ENSO की तीन अवस्थाएँ हैं:

  • तटस्थ स्थिति: जब समुद्र की सतह का तापमान सामान्य होता है।
  • एल नीनो: जब महासागर का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है, और इसका प्रभाव दुनिया भर में सूखा और गर्मी का कारण बनता है।
  • La Niña: जब समुद्र का तापमान सामान्य से कम हो जाता है, और यह अधिक वर्षा और ठंडे मौसम का कारण बन सकता है।
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भारत में, अल नीनो के प्रभाव से वर्षा कम होती है और तापमान अधिक बढ़ता है, जबकि ला नीना अधिक वर्षा और ठंडे तापमान से जुड़ी होती है।

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इस वर्ष का जलवायु परिवर्तन और ENSO का अद्भुत मोड़

संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन (NOAA) के अनुसार, 9 दिसंबर तक, भूमध्यरेखीय समुद्री सतह का तापमान औसत से नीचे था। इसके बावजूद, ENSO तटस्थ स्थितियाँ बनी रहीं, क्योंकि नवंबर और दिसंबर के बीच La Niña ‘वॉच’ चरण में था। इसके अतिरिक्त, महासागरीय नीनो सूचकांक (ONI) ने शून्य से 0.3 डिग्री सेल्सियस नीचे के तापमान को सूचित किया, जो संकेत करता है कि इस साल ला नीना का प्रभाव अपेक्षाकृत हल्का और कम समय के लिए होगा।

अगस्त और सितंबर में, मौसम मॉडल ने पूर्वानुमान जताया था कि La Niña उभरने वाली है, लेकिन अक्टूबर और दिसंबर के दौरान इसकी संभावना कम हो गई। अब विशेषज्ञों का कहना है कि एक छोटा और कमजोर ला नीना दिसंबर से फरवरी तक संभव हो सकता है, लेकिन इसका प्रभाव भारतीय सर्दियों पर कम होगा।

La Niña और 2024 का वैश्विक तापमान

2024 में, इस वर्ष का तापमान 2016 को पीछे छोड़ सकता है, जो अब तक का सबसे गर्म वर्ष माना जाता था। वैज्ञानिकों का मानना है कि ENSO के तटस्थ चरण और La Niña के कमजोर होने से तापमान में वृद्धि हो रही है। ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से यह और भी तेजी से बढ़ सकता है, और इससे मौसम की घटनाओं में बदलाव हो सकता है।

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महासागरीय संकेत और वैज्ञानिक पूर्वानुमान

वैज्ञानिकों ने समुद्र के तापमान के विश्लेषण के आधार पर यह बताया था कि 2024 में ला नीना के कम से कम कुछ महीनों तक सक्रिय होने की संभावना थी, लेकिन अब तक यह घटना ठीक वैसा नहीं हुआ जैसा अनुमानित था। अब विशेषज्ञ यह मानते हैं कि इस साल La Niña की कोई बड़ी घटना नहीं होगी, और वैश्विक तापमान में और वृद्धि हो सकती है।

भविष्य के जलवायु संकट

2024 का यह अनुभव हमें यह दिखाता है कि जलवायु परिवर्तन और ENSO जैसी घटनाएँ अपेक्षित से ज्यादा जटिल और अप्रत्याशित हो सकती हैं। इसका मतलब यह है कि हमें जलवायु संकट से निपटने के लिए अधिक प्रभावी नीतियाँ और प्रौद्योगिकियाँ अपनानी होंगी। वैश्विक तापमान में वृद्धि और मौसम की चरम घटनाओं की संभावना को देखते हुए, जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक स्तर पर ध्यान केंद्रित करना बेहद महत्वपूर्ण हो गया है।

निष्कर्ष

2024 की जलवायु घटनाएँ यह दिखाती हैं कि ला नीना के प्रभाव को लेकर किए गए पूर्वानुमान गलत साबित हुए हैं। इसका मतलब यह है कि हमें जलवायु घटनाओं के प्रति हमारी तैयारी और प्रतिक्रिया योजनाओं को भी अपडेट करने की आवश्यकता है। जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ता जा रहा है, हमें इस पर गहरी नजर रखनी होगी, ताकि भविष्य में इसके प्रभावों को कम किया जा सके।

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आम तौर पर, समुद्री सतह के तापमान में स्पष्ट परिवर्तन के मामलों में मौसम मॉडल की सटीकता अधिक होती है, यानी, जब मजबूत एल नीनो या ला नीना होने की संभावना होती है। इस बार ऐसा होने की संभावना नहीं है, जिसके कारण मौसम मॉडल सही तरीके से काम नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि वे अपने इनपुट में तापमान में होने वाले छोटे-छोटे बदलावों को ध्यान में नहीं रख पा रहे हैं।

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