Google Chrome: अमेरिकी न्याय विभाग (DOJ) ने प्रौद्योगिकी की दिग्गज कंपनी गूगल से उसके लोकप्रिय वेब ब्राउज़र क्रोम को बेचने की मांग की है। यह कदम गूगल के ऑनलाइन सर्च में एकाधिकार को समाप्त करने के उद्देश्य से उठाया गया है। यह मांग बुधवार देर रात अदालत में दायर याचिका के तहत पेश की गई, जिसमें गूगल पर अपने प्रतिस्पर्धियों को कुचलने का आरोप लगाया गया।
Google Chrome: पर लगाम लगाने के लिए क्या हैं प्रस्तावित उपाय?
न्याय विभाग ने सुझाव दिया है कि:
- गूगल को क्रोम ब्राउज़र बेचने के लिए बाध्य किया जाए।
- गूगल को एप्पल, सैमसंग और अन्य कंपनियों के साथ उन अनुबंधों को खत्म करना होगा, जो गूगल सर्च इंजन को उनके डिवाइस पर डिफ़ॉल्ट बनाते हैं।
- गूगल को ब्राउज़र बाजार में पांच वर्षों तक दोबारा प्रवेश करने से रोका जाए।
- एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम पर गूगल की गतिविधियों की न्यायालयीय निगरानी की जाए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि गूगल अपने सर्च इंजन और विज्ञापन के एकाधिकार को बढ़ावा न दे।
Google Chrome: अदालती फैसले की पृष्ठभूमि
यह मांग अगस्त में हुए प्रतिस्पर्धा-विरोधी ऐतिहासिक फैसले के परिणामस्वरूप सामने आई। जिला न्यायाधीश अमित मेहता ने अपने फैसले में पाया कि गूगल ने अवैध तरीके से प्रतिस्पर्धा को खत्म कर ऑनलाइन सर्च में अपना वर्चस्व कायम रखा है।
सरकारी वकीलों और अमेरिकी राज्यों के एक समूह का दावा है कि इन उपायों से बाजार में प्रतिस्पर्धा फिर से बहाल हो सकती है।
सरकारी वकीलों ने अपनी याचिका में लिखा:
“गूगल ने सामान्य सर्च और टेक्स्ट विज्ञापनों के बाजार को अपनी पकड़ में जकड़ रखा है। प्रतिस्पर्धा को फिर से सक्रिय करना आवश्यक है।”
गूगल की प्रतिक्रिया
गूगल ने DOJ के प्रस्ताव को सख्ती से खारिज करते हुए इसे “कट्टरपंथी और हस्तक्षेपवादी” बताया।
गूगल के वैश्विक मामलों के अध्यक्ष केंट वॉकर ने कहा:
“न्याय विभाग का यह प्रस्ताव न्यायालय के फैसले से बहुत आगे बढ़कर है। यह गूगल के कई उत्पादों को प्रभावित करेगा, जिन पर लाखों लोग रोज निर्भर हैं।”
गूगल ने 20 दिसंबर तक अपने प्रस्तावित उपायों के साथ अदालत में जवाब देने का वादा किया है।
गूगल का प्रभुत्व और एकाधिकार का सवाल
वेब ट्रैफिक एनालिसिस प्लेटफॉर्म StatCounter के अनुसार, गूगल का सर्च इंजन वैश्विक स्तर पर 90% ऑनलाइन सर्च का संचालन करता है।
सरकारी वकीलों ने कहा है कि:
- गूगल का क्रोम ब्राउज़र और एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम उपयोगकर्ताओं को गूगल सर्च की ओर आकर्षित करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
- ये प्लेटफॉर्म गूगल को प्रतिस्पर्धा को खत्म करने का साधन प्रदान करते हैं।
Google Chrome: प्रस्तावित बदलाव और उनका प्रभाव
DOJ ने यह भी प्रस्ताव दिया है कि गूगल को अपने पारिस्थितिकी तंत्र के जरिए सर्च और टेक्स्ट विज्ञापनों के बाजार पर एकाधिकार बढ़ाने से रोका जाए। इसके अलावा, एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम पर न्यायालय की निगरानी भी प्रस्तावित है।
गूगल के खिलाफ यह मामला 2020 में डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन के अंत में दर्ज किया गया था। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर दूसरा ट्रम्प प्रशासन सत्ता में आता है, तो यह मामला जारी रहेगा।
विशेषज्ञों की राय: क्या बाजार में प्रतिस्पर्धा बहाल होगी?
वेंडरबिल्ट लॉ स्कूल की एंटी-ट्रस्ट विशेषज्ञ प्रोफेसर रेबेका एलेन्सवर्थ ने कहा:
“यह अजीब होगा कि दूसरा ट्रम्प प्रशासन इस मुकदमे से पीछे हटे। राज्यों द्वारा दायर याचिकाएं इस मामले को जारी रखने के लिए पर्याप्त हैं।”
जॉर्जिया विश्वविद्यालय की प्रोफेसर लॉरा फिलिप्स-सॉयर ने कहा कि इन प्रस्तावित परिवर्तनों से ऑनलाइन सर्च बाजार में नई प्रतिस्पर्धा पैदा होगी।
उन्होंने कहा:
“गूगल का प्रभुत्व उसे उपयोगकर्ता डेटा इकट्ठा करने और अपने एल्गोरिदम को परिष्कृत करने में मदद करता है। लेकिन उसके अनुबंध नए प्रवेशकों के लिए प्रतिस्पर्धा के रास्ते बंद कर देते हैं।”
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क्या होगा आगे?
जिला न्यायाधीश अमित मेहता के 2025 की गर्मियों तक अपना अंतिम फैसला सुनाने की उम्मीद है। अगर DOJ के प्रस्ताव लागू होते हैं, तो गूगल के प्रतिस्पर्धियों को बाजार में जगह बनाने और नवाचार के लिए बड़ा मौका मिलेगा।
क्या यह कदम तकनीकी जगत में संतुलन लाएगा, या गूगल इसे चुनौती देकर अपनी पकड़ बनाए रखेगा? इसका जवाब आने वाले समय में मिलेगा।